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ब्रह्मा, विष्णु, महेश के संयुक्त अवतार हैं दत्तात्रेय

दत्तात्रेय ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश तीनों का ही संयुक्त रूप हैं। मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा को दत्तात्रेय जयंती मनाई जाती है। इस दिन दत्तात्रेय जी के बालरूप की पूजा की जाती है।
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार तीनों देवियों पार्वती, लक्ष्मी तथा सरस्वती को अपने पतिव्रत धर्म पर बहुत घमंड हो गया। नारद जी ने इनका घमंड चूर करने के लिए बारी-बारी से तीनों देवियों के पास जाकर देवी अनुसूया के पतिव्रत धर्म का गुणगान करने लगे।
ईर्ष्या से भरी देवियों ने नारद जी के चले जाने के बाद देवी अनुसूया के पतिव्रत धर्म को भंग करने की जिद ठान ली। ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश तीनों को अपनी पत्नियों के सामने हार माननी पड़ी और वे तीनों देवी अनुसूया की कुटिया के सामने एक साथ भिखारी के वेश में जाकर खड़े हो गए।
जब देवी अनुसूया इन्हें भिक्षा देने लगी तब इन्होंने भिक्षा लेने से मना कर दिया और भोजन करने की इच्छा प्रकट की। अतिथि सत्कार को अपना धर्म मानते हुए देवी अनुसूया उनके लिए भोजन की थाली परोस लाई, लेकिन तीनों देवों ने भोजन करने से इन्कार करते हुए कहा कि जब तक आप हमें गोद में बिठाकर भोजन नहीं कराएंगी, हम भोजन नहीं करेगें।
अपने पतिव्रत धर्म के बल पर उन्होंने तीनो की मंशा जान ऋषि अत्रि के चरणों का जल तीनों देवों पर छिड़क दिया, जिससे तीनों बालरूप में आ गए। बालरूप में तीनों को भरपेट भोजन कराने के बाद, देवी अनुसूया उन्हें पालने में लिटाकर अपने प्रेम तथा वात्सल्य से उन्हें पालने लगी। धीरे-धीरे दिन बीतने लगे और काफी दिन बीतने पर भी ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश घर नहीं लौटे तब तीनों देवियों को अपने पतियों की चिंता सताने लगी।

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