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परोपकार सेवा समिति ने जरूरतमंदों में बाँटी गर्माहट, पुण्यतिथि पर उमड़ा मानवीय सहभाव

 

सुल्तानपुर (उत्तर प्रदेश). दिसंबर की सर्द हवा जब अपने पूर्ण असर में हो, ऐसे समय किसी जरूरतमंद को गर्माहट देकर उसका मन हल्का कर देना—यही संवेदना सुल्तानपुर के दिखौली ग्राम में उस क्षण जीवंत हो उठी, जब परोपकार सेवा समिति दिखौली द्वारा पत्रकार गुरुप्रसाद सिंह के माता–पिता स्व. मूल प्रताप सिंह और स्व. तालुका देवी की पुण्यतिथि पर साड़ी और कंबल वितरण का भावपूर्ण कार्यक्रम आयोजित किया गया। गाँव के नीलकंठ महादेव, लक्ष्मी एवं गणेश मंदिर परिसर में सुबह से ही लोगों का आना-जाना शुरू हो गया था, और वातावरण में ऐसी आत्मीयता घुली हुई थी जिसने पूरे आयोजन को परिवार के उत्सव जैसा रूप दे दिया।
कार्यक्रम में गाँव के अधिकांश गणमान्य नागरिक, बुजुर्ग, महिलाएँ और युवा बड़ी संख्या में मौजूद थे। मुंबई से आए समाजसेवी हनुमान शुक्ला ने जब जरूरतमंदों के हाथों में कंबल और साड़ी थमाई, तो अनेक चेहरे आत्मिक संतोष से चमक उठे। उनके साथ काका ओंकारनाथ सिंह, काका ननकू सिंह, बब्बन सिंह, पूर्व लेखपाल कपिलदेव सिंह, दिलीप सिंह, पूर्व प्रधान अमरजीत गोसाईं, संतोष सिंह, अजय सिंह, गिरजेश सिंह, पूर्व बीडीसी अजय सिंह, ठाकुर शेषनाथ सिंह, रंजीत सिंह, लालबहादुर सिंह, भाने सिंह, फूदी सिंह, हरदेव सिंह, संजय सिंह, सुमित सिंह, सोहम सिंह, पंडित पांडेय महाराज, पन्नालाल धईकार, समाजसेवी विवेक सिंह, राजेश सिंह, शिवाकांत पाण्डेय, मिलहू पंडित, दिलीप सिंह, कप्तान सिंह समेत अनेक सम्मानित ग्रामीणों ने भी अपने कर-कमलों से वस्त्रदान में सहभागिता निभाई।
महिला शक्ति की ओर से वीना जीपी सिंह, केश कुमारी बब्बन सिंह और अखिलेश संजय सिंह की उपस्थिति ने पूरे आयोजन को और अधिक सौहार्दपूर्ण बना दिया। उनकी सहभागिता ने यह संदेश दिया कि सेवा का कार्य तब पूर्ण होता है जब समाज का हर वर्ग दिल से साथ खड़ा हो।
गाँव के करीब 551 जरूरतमंद परिवारों को साड़ी और कंबल प्राप्त हुए। कई बुजुर्ग महिलाएँ साड़ी लेते हुए भावुक दिखीं, और अनेक परिवारों ने गर्म कंबल को छूते ही मुस्कुराकर सिंह परिवार को आशीर्वाद दिया। स्थानीय लोगों ने बताया कि स्व. मूल प्रताप सिंह और माता तालुका देवी के जीवन में भी उदारता और करुणा प्रमुख मूल्य रहे थे, और उनकी पुण्यतिथि पर किया गया यह सेवा कार्य उन मूल्यों को एक बार फिर मूर्त रूप देता है।
दोपहर तक पूरा वातावरण मानवीय संवेदना और सामाजिक सामूहिकता से भर गया। गांव के बच्चे, बुजुर्ग, महिलाएँ—सबके चेहरों पर यह संतोष स्पष्ट था कि सर्दी की इस ऋतु में कोई भी परिवार बिना गर्माहट के न रहे। दिखौली ग्राम सभा उस दिन सचमुच सेवा, स्मृति और मानवता के संगम जैसा दिखाई दिया।





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