भोपाल, वैश्विक महामारी कोरोना के कारण इस बार मध्यप्रदेश के रायसेन जिले में पवित्र रमजान माह में ऐतिहासिक किले से रोजा खोलने एवं सहरी के लिए बारूद भरकर तोप चलाने की चली आ रही वर्षों पुरानी परम्परा भी बाधित होगी। रमजान का पवित्र माह 25 अप्रैल से शुरू हो रहा है। कोरोना महामारी के चलते मुस्लिम त्यौहार कमेटी ने मुस्लिम भाइयों से राय सलाह कर इस बार तोप नही चलाने का निर्णय लिया है। बल्कि मस्जिदों की जगह घर में ही नमाज पढ़ने की भी अपील की है।
मुस्लिम त्यौहार कमेटी के अध्यक्ष यामीन मोहम्मद ने बताया कि रमजान माह में चली आ रही वर्षों पुरानी परम्परा के अनुसार रमजान के माह में तोप की गर्जना सुनकर करीब 50 गांव के लोग प्रति वर्ष आने वाले रमजान माह में रोजा खोलते हैं। रमजान के पवित्र माह में राजधानी भोपाल से सटे रायसेन जिला मुख्यालय पर हर वर्ष तोप की गर्जना के साथ मुसलमान बंधु सहरी और रोजा अफतारी करते आ रहे हैं। यह देश में अपनी तरह की यह अनूठी परंपरा है। इस परंपरा को जिला प्रशासन ने भी बरकरार रखा।
जिला कलेक्टर द्वारा प्रति वर्ष तोप चलाने और बारूद खरीदने कि विधिवत लिखित अनुमति मुस्लिम त्यौहार कमेटी को रमजान माह में सीमित समयावधि के लिए प्रदान की जाती है। जिला मुख्यालय स्थित ऐतिहासिक किले की पहाड़ी पर एक नियत स्थान है। जहां रमजान माह प्रारम्भ होने के एक दिन पहले प्रशासन की अभिरक्षा में रखी तोप को मुस्लिम त्यौहार कमेटी के सदस्य लेकर जाते हैं।
भोपाल स्टेट के आखिरी नबाव हमीदुल्लाह खान द्वारा यह तोप रायसेन के मुसलमानों को दान में दी गई थी। इस तोप में लगभग दो सौ ग्राम बारूद का प्रयोग किया जाता है। रियासत के नबावी शासन काल से ही यहां रमजान माह में तोप सहरी का संकेत देती आ रही है।
आधिकारिक जानकारी के अनुसार इस तोप का पहला लाइसेन्स सबसे पहले वर्ष 1956 में तत्कालीन कलेक्टर बदरे आलम ने जारी किया था। रमजान माह के बाद इस तोप को विधिवत कलेक्ट्रेट के मालखाने में जमा करा दी जाती है। रमजान माह में अलसुबह होने वाली सहरी की सूचना नगाड़ा बजाकर देने की भी अनूठी परंपरा रही है। पांच सौ फीट ऊंची किले की पहाड़ी से यह तोप रात के सन्नाटों को चीरती नगाड़ों की आवाजों से आसपास के लगभग पचास गांव के रोजेदारों को इस वर्ष नही जगाएगी।
महत्वपूर्ण बात यह भी है कि ईद का चाँद दिखने का जितना इंतजार देश के रोजेदारों को होता है, उतना ही इंतजार ईद का चाँद दिखने के साथ ही उस दिन विशेष रूप से लगभग दस बार तोप चलाकर चांद दिखने का संकेत भी दिया जाता रहा है।